2009 में आव्हाड 2019 में डॉ. फैजी

मुंब्रा। शहर में वर्ष 2009 से विकास की गंगा बह रही है जो 2019 तक थमने का नाम ही नहीं ले रही है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इन दस सालों के विकास में शिक्षा या शिक्षा के स्तर का कही नामो निशान नहीं है। ऐसा क्यो होता है कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में शिक्षा और रोजगार को विकास के साथ क्यों नहीं जोडा जाता? वजह साफ है यह समाज जितना अनपढ़ गंवार रहेगा उतना ही उन्हें बेवकूफ बनाना आसान होगा, वरना इस मुस्लिम समाज का इतिहास इतना विकसित है कि अपने आबाअजदाद की मिसाले दे देकर सवाल पूछना शुरू कर देगा और यही राजनेता नहीं चाहते। विकासहीन मुंब्रा-कौसा हमेशा से ही मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहा है। ऐसे में 2009 में जितेन्द्र आव्हाड मुंब्रा-कलवा सीट से चुनाव लड़ने आए। उस समय जमकर प्रचार चला कि एक पढ़ा लिखा सुशिक्षित उम्मीदवार आया है। शहरवासियों ने उसे हाथों हाथ ले लिया और उन्हें मुंब्रा-कौसा वालों ने आव्हाड को जितेन्द्र आव्हाड बना दिया, जबकि उस समय जितेन्द्र आव्हाड एक कोरे कागज की तरह थे और मंब्रा-कौसा वालों ने उस कोरे कागज पर जितेन्द्र आव्हाड को 10 साल के लिए विधायक लिख दिया और मुंब्रा को रद्दी कागज की श्रेणी में लाकर रख दिया। इतिहास खुद अपने आप दोहराता है, ठीक 2009 की तरह रातो रात अल्तमस फैजी को यहां की अवाम ने खुले मन से अपने गले लगा लिया है। अब वर्ष 2019 में डॉक्टर अल्तमस फैजी चुनाव मैदान में है वे सामने खु वर्ष 2018 में है